Thursday, 21 December 2017

सफ़र

बचपन से हम थे देख रहे,
कोई इंजिनियर था बन रहा, 

कोई डॉक्टर था बन रहा,
आई.ए.एस का तो फिर रौब ही कुछ और,
बस पा ले एक मुकाम हम,
ऐसा कुछ था वह दौर! 
भेड़ चाल में चलते-चलते,
कशमोकश में जकड़े-जकडे,
ख्याल था वो आ रहा,

एक सम्मान समाज का,
ख्वाब था वो छा रहा,
एक सतत बदलाव का!
उन्ही खयालों को पकडे-पकडे,
उसी कशमोकश में जकड़े-जकड़े,
हम थे धुंध रहे,
अनजान मंजिल का वो रास्ता! प्रेरणा थी दिल में एक,
पर तस्वीर वो धुंधली थी,
मन मे पर विश्वास लिए, 
मंजिल हमें वो ढूंढनी थी!
एसा नहीं हमें मिला नहीं,
वो मुकाम जिसे हम थे ढूंढ रहे,
देर आए, दुरुस्त आए,
हम एक मंजीर पर थे पहुच रहे!
अब जब वो उम्मीद दिख रही है,
उसमुकाम को पाने की,
चाह है इस सफ़र को बरक़रार हम रखेंगे,
इस राह में, इस रास्ते में, कदमताल हम करते रहेंगे !
- आस्था बहुगुणा 

Monday, 24 April 2017

'CRAFTING JUSTICE', Open forum for exhibition.

We are pleased to inform you that, we have worked on a unique 'Media and Politics' project aiming to analyze dynamics of voting pattern since the penetration of the press and arrival of 24*7 news TV channels and social media; especially in the context of recently held Uttar Pradesh assembly elections.